एक कविता जो मैंने अपने लिए लिखी है... बस यूं ही मन किया, कि कुछ ऐसा भी हो जो आप मुझी को समर्पित हो. मेरे बारे में कुछ बातें कहती कविता... कुछ अटपटी सी बातें, अटपटी पर असली. असली, मनचली हवा जो कभी मन मोह लेती है, और कभी चुगली बनकर गले में अटक जाती है.
कभी चिड़ियों को आवाज़ बदलकर मैं आवाज़ लगाती हूँ,
कभी बंद कमरे में बिन बादल ही मोरनी-सा नाच रचाती हूँ,
कभी घोड़ी का मानस धरकर यहां-वहां फुदकती फिरती हूँ,
और कभी, हाथ बांधे गांभीर्य ओड़ मैं इधर-उधर विचरती हूँ,
आंकलन करूं तो, दीवानेपन की गुगली तो मैं हूँ,
कभी-कभी लगता है, थोड़ी सी पगली तो मैं हूँ