“और फिर राजकुमार अपनी सुंदर प्रियतमा को अपने साथ सफेद घोड़े पर बैठा कर ले गया, और वो सदा सदा के लिए एक होकर प्रसन्नता से जीने लगे।”
ज़्यादातर कहानियों का जब ऐसा ही अंत देखती थी मैं,
तो मन ही मन हमेशा ये सोचा करती थी मैं,
कि अगर मेरे पास ढेरों रुपए होते, तो जासूस लगवाती मैं,
पता करने कि क्या सच में सदा सदा के लिए रहता है वही प्रेम?
कि असल जीवन तो ऐसा नहीं होता…
कि वो शुरु शुरु का खुमार सा,
वो नशा वो सुरूर वो सौंधा बुखार सा,
लगातार चढ़ा तो नहीं रह सकता…