संबल
संबल
संबल
आकुल ह्रदय को संबल देती आशा
कभी यूँ भी होता है, कि मन व्यथित हो, आकुल हो, फिर भी एक छोटी सी आशा उस प्रतिकूल परिस्थिति में भी मन को संबल सा देती रहे... आशा की विजय को कविता में पिरोते शब्द...
संध्या का रंग सुनहरा,
दमके जैसे संदल,
अपरिचित पथ पर यूँ ही,
विचरित है मन चंचल,
विचरित है मन चंचल,
आतुर अधीर सा हो रहा,
इतनी है उथल पुथल,
कि सबकुछ लगे उलझा सा,
मिले नहीं कोई हल,
इतनी है उथल पुथल,
कि सबकुछ लगे उलझा सा,
मिले नहीं कोई हल,
आकुलता के शूल से हताहत
होकर भी मन कोमल,
अब तक है अपराजित,
पाए कहां से इतना बल,
होकर भी मन कोमल,
अब तक है अपराजित,
पाए कहां से इतना बल,
कि नैनों में है नीर पर
ठहरा हुआ है काजल,
सुकुमार स्वप्नों की ज्योत से
उजला मन का अंचल,
ठहरा हुआ है काजल,
सुकुमार स्वप्नों की ज्योत से
उजला मन का अंचल,
सरल मन का सहज सा
विश्वास है कैसा अटल,
विश्वास है कैसा अटल,
भले हो आज उलझन में
सुलझा सुंदर होगा कल,
सुलझा सुंदर होगा कल,
विचारों के इस भंवर में भी
एक कोना है समतल,
प्रिय से मिलने की आशा,
देती मन को संबल...
एक कोना है समतल,
प्रिय से मिलने की आशा,
देती मन को संबल...
~ लेखनी ~
अनूषा की