प्रेम के अनोखे स्वाद

प्रेम के अनोखे स्वाद

नए लोगों से मिलना, उनसे विचारों का आदान-प्रदान करना - ये सभी कुछ जीवन का हिस्सा है. पर कभी-कभी कुछ विचित्र लोग मिलते हैं. उनके विचार जगत से अनोखे, उनकी अपेक्षाएं पूर्ण रूप से असंगत... पर अपनी इन्हीं विचित्रताओं के कारण वो आपको प्रेरित कर सकते हैं, कुछ नया रचने को. कैसी विडंबना है ना... ये कविता नितांत सहज सत्य को शब्दों में बाँधती है, किंतु इसकी प्रेरणा जिनसे मिली, वे लोग इन सारे स्पष्ट तथ्यों को सिरे से नकार रहे थे. 
प्रेम के एक ही रूप को, एक ही तरह की अभिव्यक्ति को संपूर्ण सत्य मान लेने की त्रुटि करने वाले आपको भी मिले हैं क्या? तो उन्हें मन से निकालिए नहीं... कौन जाने आपका भी मन प्रेरित हो उठे... वस्तुत: प्रेम की तरह प्रेरणा के स्त्रोत भी तो विविधता से परिपूर्ण हैं.

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प्रेम के अनोखे स्वाद - हिंदी कविता

मन मस्तिष्क के खिड़की दरवाज़ों को ज़रा थोड़ा और खोलो,

उसे भी भीतर आने दो, जो न समझे, तोलो मोलो और बोलो,

क्योंकि तराजू, तोल आदि केवल मापदंड की भाषा है,

इन सबसे परे, प्यार देता एक सुंदर उज्जवल आशा है,

ये प्रेम ही रिश्तों के पौधों की अति आवश्यक खाद है,

परंतु प्रीत के भी देखो तो कैसे भिन्न-भिन्न से स्वाद हैं!

मां की गुस्से भरी फटकार का तीव्र तीखापन प्यार है, 

और अपार स्नेह ही पिता की बातों का मीठा दुलार है,

गुरू की खारी डाँट में वातसल्य संग ज्ञान का आधार है,

बच्चों की चटपटी बातों पर मुग्ध-मोहित सकल संसार है, 

साथियों के चरपरे तानों में भी प्यार की चटकार है,        

बहन के खट्टे उलाहनों में भी बसी स्नेह की धार है,

विरह की हूक कसैली होकर भी ढेरों प्यार भरे दिलों की आस है,

और कई धड़कनों की धुरी बस मिलन की नमकीन सी मिठास है.

 

~ लेखनी ~

अनूषा की