कब आओगे तुम
कब आओगे तुम
प्रिय की प्रतीक्षा करते मन की अाकुलता
आकुल हृदय की विरोधाभासी, असंभव सी कल्पनाओं को शब्द देती एक कविता।
भागते ठहराव से
ठहरे बहाव से
पतझड़ के फूलों से
जेठ के झूलों से
सबसे पूछा मैंने
कब आओगे तुम...
छिछला सा लगे सागर,
सिमटा सा लगे अंबर,
इंद्रधनुष हुआ रंगहीन,
तारे कालिमा में विलीन,
बादलों में बने चेहरों से
रुकी हुई नीली लहरों से
एकाकी मेलों से
हारे हुए खेलों से
सबसे पूछा मैंने
कब आओगे तुम...
शोर में पाऊँ अब खामोशी,
सन्नाटा किया करे सरगोशी,
लगे अंधेरी सी हर किरण,
गति खो चुका मन का हिरण,
मूक पड़ी हर धुन से
बुझे बुझे से अरुण से
ठहरी हुई घड़ियों से
चुभती पंखुड़ियों से
सबसे पूछा मैंने
कब आओगे तुम...
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~ लेखनी ~
अनूषा की