झूठे मूठे रिश्तों को बचाने की कवायद में,
जीवन का जो समय गया,
उसका हर पल सच्चा था...
झूठ के पैर ही न थे, फिर क्यूँ सोचा किये
कि बैसाखियों की लकड़ी का
स्तर बुरा था कि अच्छा था?
बाद में जाने क्यूँ
पछतावे के आंसू बहे, जब सदा से
कोशिशों के पीछे विश्वास ही कच्चा था...