मेरी प्यारी अध्यापिका - बाल कविता
मेरी प्यारी अध्यापिका - बाल कविता
मेरे बेटे की कक्षा में एक वाक् प्रतियोगिता का आयोजन हुआ. अगले दिन प्रतियोगिता थी, और एक छोटी सी सूची आई थी, विभिन्न विषयों की. नन्हे जयोम से जब पुछा कि किस विषय पर बोलोगे, तो बेझिझक बोला, अध्यापिका पर. मैंने कहा ठीक है फिर, तुम्हें तो कुछ पंक्तियाँ आती ही हैं, वो ही बोल देना. तो कहता है नहीं, और भी चाहिए. मैंने पूछा, गाना? हाँ. तो हमने गाना ढूँढा. बहुत ढूँढा. पर कुछ पसंद का मिला ही नहीं. तब मैंने सोचा, इसके लिए छोटी सी कविता मैं ही लिख देती हूँ.
जब स्कूल जाना शुरू किया था, तब जाता तो ख़ुशी ख़ुशी था, पर वापसी पर देर हो जाने पर जयोम माँ को याद करके बहुत रोता था. और उसकी अध्यापिका दीपाली जी उसे बहुत प्यार से समझाती थी. बस इसी बात को कविता में कह दिया. जयोम ने एक पंक्ति भी बदलवाई. पहले "मैं भी तो माँ जैसी ही हूँ", की जगह, "मैं हूँ ना" लिखा था. तो उसे पसंद नहीं आया. उसने कहा, "मम्मा, मॅम ने तो कहा था, स्कूल मैं भी तो मम्मा ही हूँ." तो उसके हिसाब से परिवर्तन किया, और फिर जनाब ने जल्दी से याद कर लिया. कक्षा में बहुत प्रशंसा भी मिली.
तो आप भी पढ़ें, और इस छोटी, सरल कविता का आनंद लें.
घर छोड़ कर शुरु-शरू में
स्कूल चला जब आता था,
मां को याद कर कर के,
मैं बहुत आंसू बहाता था,
फिर प्यारी अध्यापिका ने
प्यार से मुझको समझाया,
मैं भी तो मां जैसी ही हूं,
कह कर मुझको सहलाया,
अपनी प्यारी शिक्षिका को,
धन्यवाद चाहता हूं कहना,
आप हमेशा नन्हे मुन्नों
संग बस ऐसे ही रहना।
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~ लेखनी ~
अनूषा की