सर्वगुण सम्पन्न - उपाधि या जुमला?

सर्वगुण सम्पन्न - उपाधि या जुमला?

अब इस बार पति महोदय ने कह दिया। सर्वगुण सम्पन्न। मेरा पारा चढ़ा तो पूरे २ मिनट ५० सेकंड के बाद उतरा। क्या है क्या ये “जुमला” सर्वगुण सम्पन्न? सर्व का अर्थ सभी।

जटिल मनुष्यों का लगातार प्रगतिरत चेतन नित नए गुणों का सृजन कर रहा है। सारे गुण तो विदित होना (पता होना) भी संभव नहीं हैं। 
और “सम्पन्नता” सर्व की मोहताज क्यों है?

ये जुमला महिलाओं के लिए ही अमूमन सुनने में आता है। या तो सर्व गुण सम्पन्न समझना, या सर्वगुण सम्पन्न की अपेक्षा रखना — दोनों ही संकीर्ण मानसिकता के परिचायक बनेंगे। दिमाग की खिड़कियों को थोड़ा खोलें, और ताजी हवा में सांस लें… सरलता से स्वीकारें कमियों को, अवगुणों को। ये अवगुण सुधारने का प्रयत्न कर रहे हैं, बहुत अच्छा। पर जहां आप ये सोचने लगे, कि सारे अवगुणों से आप मुक्ति पा लेंगे, तो ये बहुत बड़ी भूल है। इन अवगुणों का, और ढेरों गुणों में से कुछ गुणों का मिश्रण ही तो हमें सबसे अनोखा बनाता है।

सर्वगुण सम्पन्न जैसी उपाधियां दरअसल अव्यवहारिक (impractical), अतार्किक (illogical) और असंगत (insane) मापदंडों को जन्म देती है। 

चूंकि आप सर्वगुण सम्पन्न नहीं हैं, इसलिए आप किसी और से कमतर आँकी जाएंगी।
और चुंकि आप तथाकथित रूप से सर्वगुण सम्पन्न हैं, इसलिए आप के लिए त्रुटियां करने का कोई “scope” नहीं होगा। आप अपेक्षाअों के भार के नीचे अपनी सामान्य अभिव्यक्ति तक खो देंगी।

इन उपाधियों को धक्का मारकर श्रेष्ठता के भ्रामक सिंहासन से गिरा देना चाहिए। 
कुछ नई उपाधियाँ निर्मित हों अब… समय आ गया है। 

~ कुछ गुणों से संपन्न, और ढेरों अवगुणों से “ग्रसित” नहीं - कभी जूझती, और कभी उनको स्वीकार कर आगे बढ़ती,
एक सामान्य स्त्री

~ मेरे मन की भावन
(बुधवार, २२ जनवरी, २०१९)

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अव्यवहारिक, अतार्किक, असंगत मापदंडों से परे अपने अस्तित्व की नई परिभाषा को गढ़ें। उपाधियाँ सतही गुण-अवगुण नहीं, वरन गहरे संघर्ष को सम्मानित करने हेतु हों।

हिन्दी विचार - सर्वगुण सम्पन्न की मिथ्या उपाधि