पीली साड़ी (कहानी, लघु कथा)
पीली साड़ी (कहानी, लघु कथा)
** नंदिनी **
नई दुल्हन कमरे की तरफ़ वापस जाते हुए सोच रही थी, कि इतनी तारीफ़ तो पूरे साल भर में मिला कर भी ना मिली होगी। हतप्रभ से दिमाग़ में आए इस विचार पर नंदिनी मुस्कुरा दी। वैसे सुबह से मुस्कुरा ही रही थी, तो गाल थोड़े दुखने लगे थे। पर ये माहौल ही कुछ ऐसा था। शादी को दिन हुए थे दो, और ढेरों रस्में, उनसे जुड़े छोटे बड़े फ़ंक्शन, और बहुत सारा गीत संगीत।
नंदिनी एक बड़े से शहर के एकल परिवार की इकलौती बिटिया थी। और यहाँ पर ढेर सारे रिश्तेदार, कुछ बेहद नज़दीकी, कुछ दूर के होते हुए भी मन के बहुत पास। सासू जी शादी के कुछ समय पहले से ही भरसक प्रयास कर रही थीं, कि नाम के अलावा भी कुछ ऐसी बातें/किस्से नंदिनी को बताएँ, कि उसे याद रखने में कुछ आसानी हो जाए। नंदिनी को उससे मदद भी मिली, और वो भी इस सारी क़वायद का बहुत आनंद ले रही थी। कुछ दिन बाद इस छोटे से क़स्बे से लौटना ही था पति-पत्नी को अपनी कर्मभूमि बने उस बड़े से शहर में, जहाँ दोनों मिले थे। तो नंदिनी ने सोच रखा था, कि इन नए नवेले ससुराल के पलों को भरपूर जिया जाएगा। वैसे उसे लग रहा था, कि अपने पति सक्षम से ज़्यादा वो एंजॉए कर रही थी।
हाँ, ये याद रखना इतना आसान भी नहीं था। सक्षम के दूर के चचेरे, ममेरे भाई बहन तो एक तरफ़, अभी तो अपनी सगे, और पति के “फ़र्स्ट कज़ंस” के ही नाम और चेहरे ठीक से सॉर्ट करने में उलझा हुआ था उसका दिमाग़। एक नाम याद रखने में दिक़्क़त ना हुई थी वैसे। कनिका। सक्षम की मौसेरी बहन थी। उनकी सबसे चहेती भी, चुलबुल, चंचल भी। और एक अजीब सी स्पर्धा थी उसकी आँखों में, जिससे नंदिनी को बड़ी जिज्ञासा हुई। क्या होगा इस स्पर्धा का कारण? लोगों को पढ़ना उसका शौक़ भी था, और काफी हद तक उसकी शक्ति भी।
ऐसे ही विचारों में डूबे हुए, कब उसे अलॉट हुए आराम के ३० मिनट बीत गए, कुछ पता ही नहीं चला। भरी दोपहरी में अलार्म लगा कर लेटी थी, जो ज़ोर ज़ोर से बजने लगा। वो उठी और आईने के सामने खड़ी हो गई। सक्षम की पसंद की हुई ये पीली साड़ी वाक़ई बहुत सुंदर थी। अब बदल कर अगले कार्यक्रम के लिए दूसरे कपड़े पहनने थे, पर उतारने का मन ही ना था। ऐसा लग रहा था, उसी के लिए बनी हो। खैर, कुछ पलों के बाद वो तैयार थी, उसकी ननद रैना की बारी थी इस बार उसे मदद करने की, क्योंकि अकेले साड़ी/लहंगा आदि पहनने की आदत जो ना थी।
तैयार होकर निकलने लगे तो दरवाज़े पर कनिका खड़ी थी।
“अरे तू यहाँ?” रैना दीदी ने झट से पूछा, “तैयार नहीं हुई? मौसी से डाँट खानी है क्या?”
“अरे जा ही रही थी रैना दी मैं, वो तो माँ ने कह दिया, कि जाओ देखो दुल्हन तैयार हुई कि नहीं। देरी हो रही है।”
कनिका गरदन मटकाते हुए जवाब रैना को दे रही थी, लेकिन नज़र का तोल नई भाभी पर टिका था। नंदिनी फिर मुस्कुरा दी। “कनिका ये वाली साड़ी उतनी अच्छी नहीं है ना?” नंदिनी मज़ाक़ के लहजे में बोली। रैना ने जवाब बिना सुने ही बोल दिया, “बिल्कुल नहीं भाभी, ये गुलाबी रंग भी उतना ही सुंदर लग रहा है, चलो अब चलें जल्दी! अरे, चाबी ताला लिया ही नहीं, और देर हो जाएगी।”
“रैना दी, ताला चाबी दोनों ड्रेसिंग टेबल पर है, कनिका से कह दें करने, चाबी बाद में आपको दे देंगी वो?” रैना दी को बात जम गई। देरी भी बहुत हो गई थी।
** कनिका **
तो कनिका जी पहुँच गई नई भाभी के कमरे में। अकेले। बग़ैर किसी रोकटोक, सब निरीक्षण- परीक्षण हो सकता था। तभी बाहर से प्रगति के खिलखिलाने की आवाज़ आई। कनिका ने धीरे से उसे भी अंदर बुला लिया। प्रगति और कनिका मौसेरी बहनें थीं, लगभग एक उम्र की, और दोनों में खूब बनती थी। दोनों के हाथ ख़ज़ाना लग गया था। ढेर सारा सामान, कुछ जमा हुआ, कुछ जल्दबाज़ी में बिखरा छोड़ा हुआ… अकेली ड्रेसिंग टेबल ही अलीबाबा की कहानी गुफा थी।
फिर नज़र गई पलंग के कोने पर पड़ी पीली साड़ी पर। प्रगति बोली, “क्या सुंदर लग रही थी यार ये साड़ी। वैसे पलक बिल्कुल सही बोल रही थी… ये साड़ी तुझ पर नंदिनी भाभी से भी ज़्यादा अच्छी लगेगी। सक्षम भैया हर बार तेरे लिए ऐसा ही चटक रंग…”
कनिका की प्रतिस्पर्धी निगाहें तब तक अपने कंधे पर सजाई साड़ी का आकलन कर रही थी।
“पलक के बोलने से क्या होता है? बात तो तब बने जब सक्षम भैया ख़ुद कहें कि ये साड़ी मुझ पर कहीं ज़्यादा अच्छी लग रही है।”
** नंदिनी **
ये रस्म भी पूरी होने को थी, और नंदिनी की एनर्जी का कोटा भी। बहुत देर से पानी नहीं पिया था, सो रैना दी से कहकर मँगवाया। उन्होंने नंदिनी के लिए छाछ लाने को भी कह दिया था किसी से। शायद समझ गई कि अब गरमी के मारे भी नई दुल्हन का बुरा हाल है।
मंदिर के लिए सारे लोग चल पड़े थे। नंदिनी के हाथ में कलश था। उसने आगे बढ़ना शुरु ही किया था, कि पीछे से खुसर-फुसर की आवाज़ आने लगी उसे। “वही साड़ी? वही पीली वाली? पर ऐसे कैसे?” “हाँ, कनिका भी हद ही कर देती है?” “भाभी से पूछा होगा?” “श्श! चुप कर!”
नंदिनी को कुछ ख़ास समझ तो नहीं आया, पर वो इतना जान गई, कि तालाब में कंकड़ मारा गया है। इतने में कनिका की आवाज़ आई, “हाँ यार, एक भी टाँका नहीं लगाना पड़ा। एकदम परफ़ेक्ट फ़िट था, देख लो।” वो आगे आई, और नंदिनी ने देखा तो वाक़ई देखती रह गई। कनिका उसकी थोड़ी देर पहले उतारी पीली साड़ी पहनकर अच्छी तरह से तैयार होकर आई थी।
रैना दीदी का मुँह भी खुला का खुला… अब बाक़ी लोगों को तो समझ ही नहीं आया, कि नंदिनी से पूछ कर पहनी है, उसके कहने पर पहनी है, बात हुई क्या है… पर रैना दी तो जानती थी, कि ये कौन से ताले की चाबी किस जगह फँसी है। वो कुछ बोलतीं, इससे पहले नंदिनी ने इशारा कर दिया। कनिका नई भाभी से पूछने लगी, “अच्छी लग रही हूँ ना, भाभी?” उसके साथ खड़ी पलक, प्रगति और २-३ और इन्नी मिन्नी खी-खी कर हँस रही थी।
नंदिनी बस मुस्कुराकर आगे बढ़ गई।
शाम को सक्षम और नंदिनी अपने कमरे में चाय पी रहे थे। नंदिनी को लग रहा था सक्षम कुछ गहरी सोच में डूबे हैं। जानती थी, कि कनिका ने हाथों-हाथ फ़ोटोग्राफ़र से दो फ़ोटो निकलवा लिए थे, और सबको दिखाती फिर रही थी। सवाल था, कि पीली साड़ी किसके ऊपर ज़्यादा अच्छी लग रही है। हो सकता है कल वोट माँगते हुए वो तस्वीरें फ़ेसबुक या व्हाट्सएप्प पर ही आ जाएँ। असुरक्षा से उपजी प्रतिस्पर्धा को लगाम कौन दे?
सक्षम ने ही चुप्पी तोड़ी। “ग़ुस्सा तो बहुत आया होगा। बोलीं तुम कुछ भी नहीं… रैना दी को भी नहीं बोलने दिया।” नंदिनी ने मुस्कुरा कर कहा, “तो तुमने भी देख ली फोटो? नंदिनी वर्सेज़ कनिका, हू कैरीड इट बेटर!”
सक्षम को हँसी आ गई। फिर कुछ संजीदा होकर बोले, “हाँ वो ख़ुद पूछने आई थी। पूरी पलटन के साथ। मेरा वोट आख़री था शायद। सब दोस्त, भाई रिश्तेदार साथ बैठे थे। आज से पहले कनिका ने इतना एंबैरेस नहीं किया मुझे।”
“मतलब शर्मिंदा किया पहले भी है।” नंदिनी ने छेड़ते हुए पूछा।
“हाँ, वो तो तुम समझ ही गई होगी। लोगों को समझने परखने की तुम्हारी गहराई के वैसे ही क़ायल हैं।” सक्षम अपनी नई दुल्हन को मस्का लगाते हुए बोला।
नंदिनी से अब रहा नहीं जा रहा था, “अब बताओ भी, क्या कहा आपने? उसका मन रखने के लिए दोनों अच्छी लग रही हो कहा, या उसी की तारीफ़ कर के बात खतम कर दी?”
अब सक्षम चिढ़ गया। “तुम ना नंदिनी मेरी भलमनसाहत को ज़्यादा ओवरएस्टिमेट मत किया करो। इतना अच्छा भी नहीं हूँ कि वो ऐसी नालायकी करेगी और मैं उसका मन रखने की सोचूँगा।”
नंदिनी की बड़ी-बड़ी आँखें और फैल गईं। “डाँट तो नहीं दिया तुमने उसको?”
“अब ये तो सुनने वाला तय करे कि क्या किया है। मैंने कह दिया, कि कनि, साड़ी इतनी सुंदर है कि थोड़ी अच्छी तो लग ही सकती थी तुम भी, पर आँखों में जितना बेकार की होड़ का रंग है, उससे सारी साड़ी की चमक दब गई। वैसे भी किसी और के उतारे हुए कपड़ों से उसके गुणों की आभा नहीं चुरा सकते ना।”
नंदिनी अवाक रह गई। “तुमने सबके सामने इतना कुछ बोल दिया उसे? शादी का माहौल और…”
सक्षम आराम से बिस्किट उठा रहा था। “माहौल अच्छा रखने की ज़िम्मेदारी एक अकेले की नहीं होती है। ये अगली बार से तुम भी याद रखना। कोई ज़रूरत नहीं है ऐसे लोगों का लिहाज़ करने की।”
नंदिनी फिर मुस्कुरा रही थी। और एक अलग-सी रहस्यमयी वाली मुस्कान थी ये। सक्षम के बिस्किट को ब्रेक लेना पड़ा।
“गुलाबी ग्लो वाली इस मुस्कुराहट का कुछ ख़ास मतलब है क्या?” बिस्किट अभी भी चाय में डिप नहीं हुआ था।
“ना कुछ बहुत ख़ास तो नहीं, बस भलमनसाहत के ओवरएस्टिमेशन के बारे में सोच रही थी।”
सक्षम के इंतज़ार ने बिस्किट को चाय के कप से टिप करवाया। देखे जा रहा था नंदिनी को और एक्सप्लेनेशन के लिए।
“ओहो, मैं ख़ुद कुछ कह देती उसे तो इतना मज़ा थोड़ी आता। क्या पता मेरा कहा कौन किस तरह लेता। हाँ, मेरा नया नवेला लाड़ा मेरे लिए लड़ा तो उसका जो मज़ा है… ठीक इस बिस्किट की तरह है ना…”, और नंदिनी ने सक्षम का हाथ पकड़कर बिस्किट डिप करवाया, खाया, और उठकर चलती बनी। साड़ी भी तो चुननी थी। रंग कोई भी हो, उसकी आँखों की चमक बहुत बढ़ गई थी।
कुछ उसके चेहरे पर परम संतुष्टि के चाय-बिस्किट वाले भाव देखकर, और कुछ अपनी फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोलने वाली पत्नी के मुँह से “नया नवेला लाड़ा” सुनकर… सक्षम की आँखें बस नंदिनी पर ही टिकी थीं। शादी के बाद जीत और हार के बदले हुए मायने बहुत दिलचस्प थे।
बाहर डीजे वाले बाबू ने गाना लगा दिया था, “पीली लूगड़ी का झाला…”