देवरानी-जेठानी का.. पल्लू! ...और मैगी!!

देवरानी-जेठानी का.. पल्लू! ...और मैगी!!

एक कहानी और पढ़ी. पिछली वाली से भी ज्यादा अनिष्टकारी हो सकती है इस तरह की कहानी से प्रत्यारोपित होने वाली सोच. यूं देखो तो नया कुछ भी नहीं था. एक देवरानी, एक जेठानी. एक होशियार, और दूसरीमैगी मेरी साथी यार. जेठानी गृहकार्य में कर्मठ, और देवरानी ठहरी अनाड़ी निपट. अब यहां तक तो झेल गये. फिर, देवरानी पढ़ी लिखी नौकरी करने वाली, जो समझती थी कि भाभी (जेठानी) अनपढ़ यानि कि कम पढ़ी लिखी गंवार है. लेकिन अंत में, बच्चों के स्कूल में, जेठजी ने जब पत्नी को ही मंच पर स्पीच देने भेजा, और जब ग्रेजुएशन डे की फोटो देखी, तब पता चला कि जेठानी जी तो पी. एच. डी हैं. परिवार को प्राथमिकता दी उन्होंने, दो बच्चों की देखभाल करते हुए सुबह से लेकर रात तक काम करते हुए भी पल्लू तक सर से नहीं सरकता उनका बड़ों के सामने. (मापदंड की गहराई देखी?) कौन सी पढ़ी लिखी लड़कियां गांव में शादी करना पसंद करती हैं? कौन से पुरातनपंथी पल्लू से सर ढका रखने वाले ग्रामीण परिवार पी.एच.डी लड़कियों को बहु बनाना पसंद करते हैं.

शुरु में शहरी छोटी बहु अपने ग्रामीण ससुराल में जाने से कतरा रही थी, और बाद में अचानक वहीं बसी बड़ी बहु को स्कूल के फंक्शन में फर्राटेदार अंग्रेज़ी में दी स्पीच समझने वाले लोग मिल जाते हैं. जो मुझे बड़े-बड़े शहरों में भी नहीं मिले. देवरानी इतना घुल मिल जाती है जेठानी के स्वभाव के कारण, कि कुछ दिन और रुकने का आग्रह करती है पति से

हाँ भई, नौकरी में छुट्टी की कमी तो असली बुद्धूओं को पड़ती है, ये महोदया ठहरी कहानी की नायिका, इनपर, इनके पति पर कहां से होगा इस तरह का कोई दबाव.   
कैसे इस तरह से अर्नगल, विचित्र किरदारों की रचना होती है ये समझना मुश्किल होता है. क्यों एकलेखिका” — एक महिला इस तरह की अच्छी बहु, बुरी बहु की पारंपरिक परिभाषाओं और दृष्टिकोणों को छोड़ एक यथार्थ से जुड़े समकालीन परिप्रेक्ष्य की रचना करने का प्रयास भी नहीं करती?
मेरे मत से समस्या ये है, कि इस कहानी को ३०० लोगों ने पसंद किया, उस निजी ग्रूप में. अकेली मैं थी, जिसने कुछ विरोध किया, कि ऐसे किरदारों की रचना कहां तक उचित है? यथार्थ के धरातल पर चलने वाली महिलाओं में कमियां होती हैं. और कमियां होना बुरा नहीं. अपनी कमियों के बावजूद जीवन में स्वप्न देखनेवाले, और उन्हें पूरा करनेवाले किरदारों की कहानियां कहने की आवश्यकता है. जेठानी जी जैसी सर्वगुण-संपन्न महिलाओं के अनगिनत किरदार, कभी कहानियों में, कभी सिनेमा में, और सबसे ज़्यादा टीवी पर डेली सोप मेंये एक ऐसी सोच को बढ़ावा देते हैं, जो हमारी सबसे बड़ी शत्रु है. पर मेरी प्रतिक्रिया को केवल दो लोगों ने पसंद किया
कहानी के अंत में देवरानी रुकने का कारण पूछने पर पति से कहती है, कि मुझे भाभी से बहुत कुछ सीखना है, तब महोदय जवाब देते हैं, कि वाह, फिर कम से कम जला खाना नहीं खाना पड़ेगा.
और मैं, एक अच्छा खाना बनाने वाली, पढ़ी-लिखी, नौकरी कर चुकी, अपने परिवार और अपने लिए ढेरों सपने संजोने वाली, स्वयं की पच्चीसों कमियों को स्वीकार कर, उनके साथ आगे बढ़ने का निश्चय रखने वाली, यथार्थ के धरातल पर चलती एक साधारण सी औरत —— स्तब्ध होकर अपनी ही तरह या मुझसे भी शायद अधिक पढ़ीलिखी और अनुभवी शहरी महिलाओं (जिसमें अधिकतर माताएं हैं) के ३०० लाइक्स और ५० कमेंट्स को घूरने लगती हूं
कौन सी दीवार पर सर पीटूं? या शायद ढूंढने की आवश्यकता नहीं है.  
संकीर्ण सोच की दीवारें स्वत: बढ़ रही हैचहुं ओर से.


मेरे शहर की हर गली संकरी
मेरे शहर की हर छत नीची
मेरे शहर की हर दीवार चुगली”
अमृता प्रीतम ने अपनी कविता में ये पंक्तियां लिखते वक्त बरसों पहले सोचा होगा क्या, कि हमारी सोच के शहर सालों की “प्रगतिशीलता” के बाद भी ऐसी दीवारों में सिमटे रहेंगे? कि हम ऐसे ही असंगत, अनुचित अपेक्षाओं का पोषण करने वाली अनर्गल कहानियों को, किरदारों को बिना किसी तर्कशीलता के ढोते रहेंगे? 
इसके परिणामों को कई पीढ़ियों तक न केवल हमारी पुत्रियां वरन हमारे पुत्र भी भुगतते रहें, तो हमारी बला से… है ना?

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Devrani Jethani ja Pallu Aur Maggi